खाटू श्याम जी की कहानी भाग - 3 | Khatu Shyam Ki Kahani in Hindi

खाटू श्याम जी की कहानी भाग - 3   Khatu Shyam Ji Story In Hindi

खाटू श्याम जी की कहानी भाग - 3 
Khatu Shyam Ji Story In Hindi

"कैसे बने बर्बरीक से खाटू श्याम " यह लेख हमारा खाटू श्याम की कहानी का अंतिम यानी तीसरा भाग है। जिसमें भक्तों के भगवान खाटू श्याम का सुंदर चरित्र वर्णन पढ़ने को मिलेगा।

मेरे पिछले लेख Khatu Shyam Ji | खाटू श्याम की कहानी भाग - 1 और Shree Khatu Shyam Ji | खाटू श्याम जी की कहानी भाग - 2 दोनों लेखों में आप सभी का बहुत अच्छा रेस्पॉन्स मिला जिसके लिए में तहे दिल से आभारी हूँ। धन्यवाद्

आइये अब आगे के भाग को प्रारम्भ करते है।

बोलिये हारे के सहारे की। ... जय ,
खाटू नरेश शीश के दानी की। .... जय 




कैसे हुआ भगवान खाटू श्याम का सिरोच्छेदन? Khatu Shyam ki Kahani in Hindi

दोस्तों लेख के भाग-2 में पूरी तरह से स्पष्ट नहीं था कि कैसे भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक का सिरोच्छेदन क्यों और कैसे किया? बाबा श्याम को हारे का सहारा क्यू कहते है? कैसे बने बर्बरीक से बाबा श्याम ?

तो आइए जानते हैं कैसे हुआ बर्बरीक (भगवान खाटू श्याम) का सिरोच्छेदन | Khatu Shyam ki Kahani

यह कहानी है उस समय की जब महाभारत युद्ध की शुरुआत हुई थी। उस समय हमारे बाबा श्याम जो की खुद एक वीर योद्धा थे और माँ दुर्गा से वर प्राप्त कर चुके थे। और वर भी ऐसा के सिर्फ तीन बाण से बड़ी से बड़ी सेना का अंत करने का वर।

बर्बरीक भी अति उत्साहित हो अपनी माँ मोरवी के समक्ष पहुंचे माँ से आज्ञा लेने। माता ने आज्ञा तो दी लेकिन एक वचन भी माँग लिया के

"पुत्र बर्बरीक तुम  इस युद्ध में सिर्फ हरने वाले याने की कमज़ोर का ही साथ दोगे "



खाटू श्याम जी की जीवन कथा | Khatu Shyam Baba ki Kahani

फिर क्या था बाबा श्याम यानी बर्बरीक अपना तीन बाणों वाला तरकश और धनुष उठा चल दिए रण भूमि की और। भगवन श्री कृष्ण जो की यह सब जानते थे उन्हें यह भी पता था के यह हारे का सहारा किसी भी समय युद्ध का निर्णय बदलने की ताकत रखता है।

उन्हें रोकने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपना भेश बदलकर ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक के सामने आकर उनसे पूछा कि जो वरदान में तुम्हें तीन बाण मिले हैं उस तीन बाण के सहारे कैसे तुम इस युद्ध में विजय होंगे?

तो बर्बरीक ने श्री कृष्ण के प्रश्न का समाधान करते हुए कहां कि हे! भगवान मैं सामने लगे पीपल के वृक्ष के सभी पत्ते को एक बाण से भेद सकता हूँ।

तभी श्रीकृष्ण ने पीपल के पत्ते को भेधने का आदेश दिया। परंतु छल पूर्वक एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा लिया और श्री कृष्ण के देखते ही देखते बरबरीक द्वारा सारे पत्ते एक ही बाण से बिंध हो गए। परन्तु श्री कृष्णा तो सर्व ज्ञाता है , और वेः तो बर्बरीक को रोकने आये थे।

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तो अपने उदेश को पूरा करने बर्बरीक से श्री कृष्ण ने याचक भाव से याचना की।

तब बर्बरीक ने श्री कृष्ण से कहा कि हे! ब्राम्हण तुम क्या चाहते हो तब श्रीकृष्ण ने कहा कि क्या निश्चित है कि जो मैं मांगूंगा वह तुम मुझे दे दोगे?

तभी बर्बरीक ने कहा कि हे! ब्राम्हण तुम यदि मेरे प्राणों को भी हरना चाहते हो तो भी मैं तुम्हें वह सौंप दूंगा।

क्योंकि बर्बरीक एक महादानी और वचनबद्ध थे। यह सुनकर ब्राह्मण का वेश धारण किये श्री कृष्ण ने कहा कि मैं तुम्हारा शीश दान में चाहता हूं। यह सुनकर वीर बर्बरीक हक्के-बक्के रह गए। परंतु वे वचनबद्ध थे इसलिए उन्होंने कहा कि मैं इस वचन को सहर्ष पूर्ण करूंगा।

सर्वप्रथम मैं यह जानना चाहता हूं कि आप कौन हैं? तभी ब्राम्हण ने अपने विराट रूप को धारण कर श्री कृष्ण के रूप में समक्ष हुए। श्री कृष्ण ने सामने आकर बर्बरीक से कहा कि मैंने ऐसा इसीलिए वचन मांगा क्योंकि यदि मैं ऐसा नहीं करता तो तुम्हारे वजह से दोनों ही कुल युध्द में पूरी तरह से नष्ट हो जाता।

 तब बर्बरीक ने श्री कृष्ण को कहा कि मैं आपको शीश दान कर दूंगा। परंतु मैं महाभारत युद्ध देखना चाहता हूं। कृष्ण ने बर्बरीक की बातों को स्वीकार कर उनका सिरोच्छेदन कर दिया। इसके पश्चात वह शीश को अमृत जड़ी बूटियों के सहारे ऊंचाई पर स्थित पीपल के पेड़ पर व्यवस्थित रूप से स्थापित कर दिया।



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जब 16 दिन का युद्ध समाप्त हुआ और पांडवों को विजय प्राप्त हुई तो इस विजय को प्राप्त करने के पश्चात पांडवों में घमंड जागृत हो गया। श्री कृष्ण ने पांडवों को उस जगह पर लेकर गए जहां बर्बरीक का शीश स्थापित था।

जैसे ही बर्बरीक के सामने सभी पहुंचे तो सभी अपनी- अपनी वीरता का परिचय देने लगे। तभी बर्बरीक के शीश ने कहा कि आप सभी लोगों का इस जीत पर घमंड करना व्यर्थ है क्योंकि जीत तो भगवान श्री कृष्ण की नीति के अनुसार ही मिली है।

मैंने इस ययुद्ध को अपनी आंखों से देखा है और मुझे इस युद्ध में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र ही चलते हुए दिखाई दिया है और यह वृत्तांत सुनाकर बर्बरीक ने मौन रूप धारण कर लिया और उनके चुप होने पर आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी।

तत्पश्चात श्री कृष्ण ने खुश होकर वीर पुत्र महादानी बर्बरीक को यह वरदान दिया कि कलयुग में तुम्हें सभी लोग मेरे नाम "श्याम" के नाम से जानेंगे।

तुम्हें मेरा नाम मिलेगा और तुम्हें ध्याने वाले भक्तों की मनोकामना पूर्ण होगी। यह संपूर्ण कहानी का सारांश था। दोस्तों इस तरह बर्बरीक से भगवान खाटू श्याम तक का सफर रहा। आशा है कि यह संपूर्ण कहानी आपको समझ आई हो और इसको पढ़ने के पश्चात आप महाभारत काल से जुड़े से जुड़े इस अद्भुत रहस्य को जान पाएंगे।

बोलो हारे के सहारे की। ..... जय 
खाटू नरेश की। ..... जय 
हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा 

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