माखन लाल हिंदी के युग पुरुष | Makhanlal Chaturvedi Biography in Hindi
माखनलाल चतुर्वेदी कवि ,लेखक या पत्रकार हर सांचे में सटीक बैठते हैं। युग पुरुष माखनलाल चतुर्वेदी हिंदी के योद्धा पत्रकार और साहित्यकार थे। जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया कई बार जेल यात्रा भी की। राष्ट्र के प्रति उनका अप्रितम लगाव और समर्पण था। वे युवाओं के सच्चे हितेषी और मार्गदर्शक थे। ऐसे मनीषि स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार और प्रखर पत्रकार के जीवन परिचय को हर पत्रकार, साहित्यकार एवं हर भारतीय युवा को पढ़ने की आज के समय में बहुत आवश्यक है।
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जीवन परिचय बचपन के माखन लाल | Makhanlal Chaturvedi ki Jivani
युद्धा पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म होशंगाबाद के बाबई में 4 (वास्तविक तिथि 12अप्रैल ) अप्रैल 1889 को हुआ। उनके पिता पंडित नंदलाल चतुर्वेदी शिझक थे और माँ सुंदरीबाई एक गृहिणी थी। सात भाई बहिनों में माखनलाल जी जेष्ट थे। उन्होंने प्राइमरी शिझा बाबई में ही प्राप्त की, आर्थिक कठिनाइयों के कारण माखनलाल जी उपचारिक शिझा से वंचित रहे किन्तु उन्होंने अपने स्वाध्याय और अध्यनशीलता की बदौलत अनेक भाषाओं और विषयों में अप्रितम योग्यता अर्जित की। चतुर्वेदी जी का बचपन बड़े अभावों में गुजरा, किन्तु इससे उनके उत्साह, उमंग एवं बाल सुलभ शरारतीपन मे कोई कमी नहीं आई। सामाजिक समरसता की उनकी पहली पाठशाला बाबई और उसका सुरम्य प्रकृति परिवेश था। सतपुड़ा विंध्याचल की वादियों और नर्मदा झेत्र के प्राकृतिक सौन्दर्य ने बचपन से ही उन्हें प्रकृति प्रेमी बना दिया।
सामाजिक जीवन कैसा रहा | Biography of Makhan Lal in Hindi
15 वर्ष की अल्पायु में उनका विवाह 1904 में ग्यारसीबाई से हो गया। अब उन पर पारिवारिक जिम्मेदारीयों का बोझ आ गया, इसलिए उन्होंने 1905 में शिझकिय दायित्व स्वीकार कर लिया । माखनलाल जी 1912 तक शिझक रहे।
खंडवा में शिझकिय कार्य करते हुए उन्हें तब की उत्कृष्ट साहित्यिक पत्रिका प्रभा से जुड़ने का अवसर मिला और उनका विराट पत्रकारी रूप जाग्रत हो गया। अध्यापक पद छोड़कर 1913 में माखनलाल जी ने कालू राम गंगराड़े के सहयोग से प्रभा का संपादकीय दायित्व संभाल लिया ।
उनका पारिवारिक जीवन सुखमय नहीं रहा 1915 में उन्हें पत्नी विच्छोह का सामना करना पड़ा। 1904 में वे कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में शामिल हुए, वहाँ तिलक के उग्र विचारों का उन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। इस बीच उनका अन्य क्रांतिकारियों से बराबर संपर्क रहा और वे यथा शक्ति स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोग करते रहे।
माधवराव सप्रे के हिन्द केशरी ने 1908 में राष्ट्रीय आंदोलन और वहिष्कार विषय पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित कि, जिसमे चतुर्वेदी जी का निबंध प्रथम चुना गया। सप्रे जी को चतुर्वेदी जी कि लेखनी में अपार सम्भावनाओ से भरपूर साहित्यकार के दर्शन हुए उन्होंने चतुर्वेदी जी को इस दिशा में प्रकत होने के लिए प्रेरित किया।
पत्रकार के रूप में माखनलाल चतुर्वेदी | Makhanlal Chaturvedi Biography in Hindi
1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में चतुर्वेदी जी कि भेंट गणेश शंकर विद्यार्थी जी से हुईं। स्वतंत्रता की उत्कट अभिलाषा और उसे प्राप्त करने के प्रखर तेवर के साथ गहन राष्ट्रीय एवं सामाजिक सरोकार और मूल्य आधारित पत्रकारिता ये सब मजबूत धागे थे। जिन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी और चतुर्वेदी जी के बीच आत्मीय अटूट संबंधों की बुनियाद रख दी थी। दो वर्ष पश्चात् ही प्रभा का प्रकाशन बंद हो गया। 1916 में लखनऊ अधिवेशन में ही चतुर्वेदी जी ने गाँधी जी के प्रथम दर्शन किए।
1917 में चतुर्वेदी जी को विद्यार्थी जी ने कानपुर बुला लिया और प्रताप प्रेस से प्रभा का पुनः प्रकाशन शुरू हुआ। इसी वर्ष प्रताप प्रेस में विद्यार्थी जी के साथ गाँधी जी की प्रत्यझ भेंट और उनसे साझात्कार लेने का सुअवसर उन्हें मिला। गाँधीवादी विचार धारा का चतुर्वेदी जी पर गहरा प्रभाव पड़ा और यहीं से उनकी गाँधी वादी राजनीती एवं पत्रकारिता की शुरुआत हुईं।
1923 में चतुर्वेदी जी ने प्रताप का सम्पादकीय कार्य संभाला। 1919 में माधवराव सप्रे ने जबलपुर से कर्मवीर के प्रकाशन का निर्णय लिया और उसके संपादन का दायित्व चतुर्वेदी जी को सौंपा। 11 जनवरी 1920 को कर्मवीर का पहला अंक प्रकाशित हुआ उल्लेखनीय है कि गाँधी के कर्मशील तपस्वी जीवन को आदर्श बनाकर माखनलाल जी ने इस पत्र का नाम कर्मवीर रखा। इसके पूर्व 1921 में राजद्रोह के अपराध में उन्होंने एक वर्ष के जेल की सज़ा काटी थी। अन्तः जबलपुर से कर्मवीर का प्रकाशन बंद हो गया। 4 अप्रैल 1925 से दादा माखनलाल ने अपनी कर्मभूमि खंडवा से कर्मवीर का पुनः प्रकाशन आरम्भ किया और सन 1959 तक इसका सम्पादकीय दायित्व निभाते रहे।
Makhanlal Chaturvedi ki Jivani | Makhanlal Chaturvedi Biography In Hindi
एक ऐसे व्यक्ति का जिसके जीवन में, प्रत्येक कार्य में, प्रत्येक विचार में अहिंसा की छाप है, जिसकी भाव -भंगिमा तक निश्छल, नीरव, सरस मनोहारी भाव छलकते हों, उस मध्यप्रदेश के प्राण, हिंदी साहित्य के कवीन्द्र और भारत के हेनरी फेडरिक को पकड़ लेना ह्रदयहीनता नहीं तो और क्या है। इस गिरफ्तारी पर महात्मा गाँधी ने यंग इंडिया में लिखा -हमें अपने साथियों के जेल जाने पर डरना नहीं चाहिए। मेरा विश्वास है कि माखनलाल चतुर्वेदी स्वतंत्र रहने की अपेझा जेल में जाकर अपने देश की अधिक सेवा कर रहे है।
इस मामले में कोर्ट में दिया गया माखनलाल जी का बयान गौरतलब है कि मेरी अंतरात्मा निर्मल है और मै विश्वास करता हूँ कि देश के प्रति सम्मानीय और योग्य कर्तव्य का पालन करने में मैंने किसी भी नैतिक कानून के प्रति अपराध नहीं किया। मै इस या किसी भी ब्रिटिश कोर्ट से न्याय कराने के उत्सुक नहीं हूँ। इस बयान को पेश करने में आंतरिक प्रेरणा है कि मै इस शासन प्रणाली की दुष्टता प्रकट करने के पवित्र कर्तव्य का और अधिक पालन करू । मातृभूमि को पराधीनता से मुक्त कराने के लिए इससे और अच्छी सेवा नहीं कर सकता कि मै उसके लिए ख़ुशी से धैर्य से कष्ट करू। मै अपने देशवासियो को भी इसी मार्ग के अवलंबन करने की सिफारिश करता हूँ।
यह बयान माखनलाल जी के उत्कट राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र पर मर मिटने के दुर्दमनीय संकल्प, ब्रिटिश कानून व्यवस्था के दृढ़ विरोध को तो प्रदर्शित करता ही है, साथ ही देशवासियो को बलिदानी तेवर अपनाने के लिए प्रेरित करनेवाला था। जो तत्समय की आवश्यकता थी. यह बयान उनकी दृढ़ता और अप्रितम साहस का भी परिचायक है ।
साहित्य में माखन लाल का बहुमूल्य योगदान । माखन लाल लेखक और कवि के रूप में | Biography Of Makhanlal Chaturvedi In Hindi
दादा माखनलाल की साहित्यिक रचनाओं का फलक बहुत व्यापक था। उत्कृष्ट साहित्यिक अवदान के लिए दादा को अनेक सम्मानों एवं पुरस्कारों से नवाजा गया। 1943 में 'हिम किरीटनी ' कविता पुस्तक पर प्रतिष्ठित 'देव पुरुस्कार 'प्राप्त हुआ। 1947 में हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा 'साहित्य वाचस्पति ' की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1954 में उनकी कविता पुस्तक 'हिमतरंगनी ' पर 'साहित्य अकादमी 'पुरुस्कार दिया गया। उल्लेखनीय h कि यह पुरुस्कार प्राप्त करने वाले वे हिंदी के पहले रचनाकार थे। 26 जनवरी 1963 को भारत सरकार ने उन्हें 'पदमभूषण 'अलंकरन से विभूषित किया।
माखनलाल चतुर्वेदी - एक कवि, पत्रकार और लेखक का अंतिम जीवन | Makhanlal Chaturvedi In Hindi Biography
राष्ट्र ने अमर स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर पत्रकार, और साहित्य जगत के अनमोल हीरे को 30 जनवरी 1968 को खो दिया दादा की उम्र उस वक़्त 79 वर्ष थी
उनकी श्रेष्ठ कविता पुष्प की अभिलाषा ।
पुष्प की अभिलाषा-वाकई बहुत ही जीवंत कविता लिखी है माखनलाल चतुर्वेदी जी ने सही कहा गया है कि जहाँ ना पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि… देशभक्तों को समर्पित ये कविता अपने अंदर एक गहरा सन्देश छुपाए हुए है।
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक…
प्रमुख पुस्तके जो माखन लाल जी से संबंधित हैं या उनके द्वारा लिखी गयी हैं जिन्हें आप खरीद सकते हैं और माखन लाल जी के विषय में और जान सकते हैं ।
माखन लाल जी से सम्बंधित पुस्तकों के विषय में। Books of Makhan lal chaturvedi
- Patrkarita ke yug nirmata - पत्रकारिता के युग निर्माता इस नाम से यह पुस्तक उपलब्ध है जिसको लिखा है शिवकुमार अवस्थी ने यह पुस्तक आपको माखन लाल जी के पत्रकारिता में बिताए गए जीवन काल से अवगत कराएगी आपको जरूर पसन्द आयेगी।
- Makhan laal chaturvedi rachna sanchyan - माखन लाल चतुर्वेदी रचना संचयन नाम से यह पुस्तक जिसमें उनकी रचनाओं का अनूठा संचयन कृष्णदत्त द्वारा किया गया है जिसमें उनकी रचनाओं को समझने का आपको मौका मिलेगा और आप आनन्द विभोर हो जायेंगे।
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