उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जीवनी | Munshi Premchand Biography in Hindi
यू तो भारत मे कई बड़े-बड़े लेखको ने जन्म लिया, जिन्होंने अपनी कविताओं, उपन्यासों, नाटको एवं रचनात्मक कहानियों को एक सुंदर सा रूप देकर हिंदी साहित्य को आधार प्रदान किया है। इनमें प्रमुख नाम हैं जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी, धरमवीर भर्ती, हरिवंशराय बच्चन, माखनलाल चतुर्वेदी आदि। ऐसे ही एक महान लेखक जिनको भारत वर्ष उपन्यास सम्राट के नाम से जानते हैं, मुंशी प्रेमचंद्र जिनके द्वारा लिखे गए उपन्यास, कहानी, नाटक और लेख ने हिंदी सहित्य को एक आधार स्तंभ दिया है। Premchand Life Story In Hindi
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मुंशी प्रेमचंद्र कहानी, नाटक | Premchand Biography in Hindi
समीक्षाओं, और उपन्यास के लेखक होने के साथ उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों में एक पूरी सदी का मार्गदर्शन किया है। मुंशी जी उपन्यास और नाटक उस हकीकत से सबंधित होते थे, जिस हकीकत को आम जिंदगी में नजरअंदाज कर दिया जाता है। गरीबी, भ्रष्टाचार, घृणा, दया, छुआछूत पर खुलकर अपनी कलम चलाने वाले ऐसे अनूठे लेखक प्रेमचंद भारतीय साहित्य में रूचि रखने वालों की पहली पसंद हैं। प्रेमचंद्र ने अपने द्वारा लिखे गए नाटको से देश की इस कड़वी सच्चाई को समाज के सामने प्रस्तुत किया।
कैसे बने उपन्यास सम्राट | King of nobels Munshi Premchand
उपन्यास छेत्र में उनके इस योगदान के लिए उन्हें बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चटोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास साम्राट नाम दिया था।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography
मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले के लमही नाम के एक छोटे से गांव में हुया था। मुंशी प्रेमचंद्र को धनपत राय श्रीवास्तव, प्रेमचंद्र, और नवाब के नाम से भी जाना जाता है। प्रेमचंद्र के पिता का नाम मुंशी अजायबराय था, जो एक डाकघर में नौकरी करते थे। और उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था, जो एक ग्रहणी थी। मुंशी प्रेमचंद्र की मृत्यु 8 अक्टूबर को 1936 में हुई ।
बचपन से थी साहित्य में रूचि | Premchand Life Story In Hindi
मुंशी प्रेमचंद्र को बचपन से ही पढ़ाई का बहुत शोक था, उनकी प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू, फ़ारसी से हुई। मुंशी प्रेमचंद्र की पढ़ाई में अति रुचि देख उनके पिता ने उन्हें हाईस्कूल में दाख़िल कर दिया, परंतु उनके पिता की सालाना आय काम होने के कारण उन्हें स्कूल की फीस जमा करने में काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। प्रेमचंद्र पढ़ाई में बहुत होनहार थे। उन्होंने कम उम्र में ही काफी उपलब्धिया हासिल कर ली थी। महज़ 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तस्लीम होशरूब पढ़ लिया था। मुंशी प्रेमचंद्र करीब 14 वर्ष के थे, जब उनकी माता जी का देवलोक गमन हो गया। उन्होंने अपने एक उपन्यास ' कर्मभूमि' में माता के प्रेम एवं उनसे दूर होने के दुख को दर्शया है।
इस अकेले पन को दूर करने के लिए उनके संबंधियों ने उन का विवाह करवाने का फ़ैसला किया। जैसा कि पहले कम उम्र में ही बच्चो का विवाह किया जाता था, वैसे ही मुंशी प्रेमचंद्र का भी 15 वर्ष की आयु में विवाह किया गया जिससे से वह खुश नही थे।
शिक्षा और सम्मान और पद | मुंशीप्रेमचंद की जीवनी
सन 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। साथ ही आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वे एक विद्यालय में शिक्षक की नौकरी करने लगे, बी.ए.पास होने के बाद शिक्षा विभाग में इंसपेक्टर के पद के लिए नियुक्त हो गए। इस के बाद मुंशी प्रेम चंद्र ने कई आंदोलन किये उन्होंने विधवा-विवाह का समर्थन किया और वे आर्य समाज से प्रभवित रहे जो उस समय बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था।
लेखन की शरूआत | Munshi Premchand Biography in Hindi
मुंशीप्रेमचंद्र ने अपने लेखन की शरुआत पत्रिकाओं से की, उन्होंने कई बड़ी पत्रिकाओं (स्वरस्ती, माधरी, मर्यादा आदि) में अपने लेख लिखे। बाद में उन्होंने कई कहानियां लिखी जैसे - बड़े घर की बेटी, कफन, दो बैलो की कथा, पूस की रात, पंच परमेश्वर आदि। बहुत से उपन्यास लिखे जैसे - कर्म भूमि, निर्मला, गबन, गोदन, रंग भूमि आदि। वह उस अवसर का फायदा उठाकर जिनते उत्साह से आगे बढ़ेगा उतने ही उतसाह से कठनाई पीछे हटती चली जायेगी।
मुंशी प्रेमचंद्र की हिंदी की कहानियों, उपन्यासों, एवं नाटको ने लोगो को अति प्रभावित किया है। इसी कारण प्रेमचंद्र आज के समय मे देश के महान लेखको में गिने जाते है। उनके उपन्यास लेखनी की वजह से उन्हें उपन्यास सम्राट नाम से संबोधित किया जाता है। प्रेमचंद्र देश के महान लेखक ही नही बल्कि एक संवेदनशील कथाकार और सरल स्वभाव व्यत्ति भी थे। उन्होंने कई ऐसी कहानियां लिखी जीने पढ़ कर आज के समय मे लोग उन्हें याद करते है।
प्रेमचंद की कुछ पुस्तकें | Premchand Biography in Hindi
गोदान ( Godan ) आप पढ़ सकते हैं
मुंशी प्रेमचंद्र ने गोदान की रचना की थी उस समय भारत गुलाम था। ऐसे में प्रेमचंद्र ने किसान, गरीबो, जाती-धर्म, संस्कृति आदि जैसे विषयों पर लिख कर, लोगो को इस बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया था। गोदन में ग्रामिण और शहरी जीवन के बारे में बहुत ही विस्तार से वर्णन किया गया है। इस मे बताया गया है कि कैसे गांव के लोग शहर के लोगो से विपरीत अपना जीवन व्यतीत करते है। गोदन में जिस तरह से प्रेमचंद्र ने होरी और मालती जैसे पत्रो को प्रस्तुत किया था, वह आज भी ग्रामिण जीवन मे देखने को मिल जाते है। गोदन एक काल्पनिक उपन्यास है परंतु जिस तरह प्रेमचंद्र ने गांव के सीधे-सादे लोगो के जीवन को प्रस्तुत किया है वह सजीव सा दिखता है। गोदान मुंशी प्रेमचंद्र का आखरी और सबसे सर्वश्रेष्ठ उपन्यास माना जाता है।
निर्मला (nirmala)
यह उपन्यास 1927 में प्रकाशित किया गया था। इस उपन्यास में एक युवा लड़की (निर्मला) की कहानी को बताया गया है, की कैसे उस निर्मला की शादी उस की दुगनी उम्र बाले युवक से करा दी जाती है। उस युवक की यह दूसरी शादी होती है और पहली शादी से उसे तीन बच्चे होते है। इन के बावजूत भी युवक अपनी बेटी की उम्र वाली लड़की से शादी कर लेता है। शादी के कुछ दिनों बाद उस युवक के बड़े बेटे के साथ निर्मला के सबंध बताते हुए उस के चरित्र पर संदेह किया जाता है। जिस बात को कोई भी सबूत ना होने के कारण निर्मला की मौत हो जाती है। इस उपन्यास में प्रेमचंद्र का उद्देश्य मधय और निम्न वर्गियों वाली लड़कियों की स्थिति के बारे में बताना है। की कैसे समाज मे लडकियों की शादी उन कि दुगनी उम्र वाले युवक से करवा दी जाती है। दहेज की मांग की जाती है, जिस के परिणाम स्वरूप लड़कियों की मौत भी हो जाती है। यह भी आपको आसानी से ऐमज़ॉन से प्राप्त हो जायेगा।
बड़े घर की बेटी
बड़ी आसानी से आप इन पुस्तकों को प्राप्त कर पढ़ सकते हैं बड़े घर की बेटी एक ऐसा उपन्यास है जिस में एक बड़े परिवार में रहने वाले सदस्यों के स्वभाव एवं एक दूसरे के प्रति प्यार को दर्शया गया है। प्रेमचंद्र लिखते है कि कैसे बड़े परिवार में ज्यादा सदस्य होने ने उनमे छोटी-छोटी बातों पर मान मोटाव हो जाते है। इस कहानी में एक बड़े घर की बहू (आनंदी) की अपने पति के छोटे भाई यानी देवर (लालबिहारी) के साथ किसी बात पर कहा सुनी हो जाती है। बातो ही बातों में लालबिहारी का सब्र टूट जाता है जिस से वो अपनी भाभी (आनंदी) पर वार कर देता है। फिर क्या था एक छोटी सी बात की कहा सुनी एक बड़े क्लेश में बदल जाती है। प्रेमचंद्र आगे लिखते है कि कैसे परिवार के मान-सम्मान के लिए अपने ऊपर किये हुए प्रहार को भूल जाती है। और परिवार को टूटने से बचा लेती है।
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उल्लेखनीय पोस्ट। मैं बस आपके ब्लॉग पर आया और यह कहना चाहता था कि मुझे आपके ब्लॉग पोस्ट खोजने में बहुत मज़ा आया। ऐसे ब्लॉग साझा करने के लिए धन्यवाद। Munshi Premchand Essay In Hindi
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