सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय इन हिंदी | Subhadra Kumari Chauhan Biography in Hindi
Biography of Subhadra Kumari Chauhan in Hindi
सुभद्राकुमारी चौहान की गिनती भारत की स्वतन्त्रता सेनानी लेखिकाओं में की जाती है.
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म नागपंचमी के दिन 16 अगस्त 1905 को इलाहाबाद के पास निहालपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम 'ठाकुर रामनाथ सिंह' था। सुभद्रा कुमारी की काव्य प्रतिभा बचपन से ही सामने आ गई थी। आपका विद्यार्थी जीवन प्रयाग में ही बीता। 'क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज' में आपने शिक्षा प्राप्त की। 1913 में नौ वर्ष की आयु में सुभद्रा की पहली कविता प्रयाग से निकलने वाली पत्रिका 'मर्यादा' में प्रकाशित हुई थी। यह कविता 'सुभद्राकुँवरि' के नाम से छपी। यह कविता ‘नीम’ के पेड़ पर लिखी गई थी।
सुभद्रा चंचल और कुशाग्र बुद्धि थी। पढ़ाई में प्रथम आने पर उसको इनाम मिलता था। चूंकि उन्हें हिंदी काव्य से असीम प्रेम था इसलिए उन्होंने कविताएं करना प्रारम्भ कर दिया. सुभद्रा अत्यंत शीघ्र कविता लिख डालती थी,
1919 ई. में उनका विवाह 'ठाकुर लक्ष्मण सिंह' से हुआ, विवाह के पश्चात वे जबलपुर में रहने लगीं। सुभद्राकुमारी चौहान अपने नाटककार पति लक्ष्मणसिंह के साथ शादी के डेढ़ वर्ष के होते ही सत्याग्रह में शामिल हो गईं और उन्होंने जेलों में ही जीवन के अनेक महत्त्वपूर्ण वर्ष गुज़ारे। गृहस्थी और नन्हे-नन्हे बच्चों का जीवन सँवारते हुए उन्होंने समाज और राजनीति की सेवा की।
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ब्रह्म में लीन सुभद्रा कुमारी चौहान । सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी
दुर्भाग्य से देश के नवयुवकों में क्रांति का स्वर फुंकने वाली यह विरंगना 1948 में एक दुर्घटना में इस संसार को छोड़ कर चली गईं।
उनकी मृत्यु पर माखनलाल चतुर्वेदी जी ने लिखा कि "सुभद्रा जी का आज चल बसना प्रकृति के पृष्ठ पर ऐसा लगता है मानो नर्मदा की धारा के बिना तट के पुण्य तीर्थों के सारे घाट अपना अर्थ और उपयोग खो बैठे हों"।
सुभद्रा जी का जाना ऐसा मालूम होता है मानो ‘झाँसी वाली रानी’ की गायिका, झाँसी की रानी से कहने गई हो कि लो, फिरंगी खदेड़ दिया गया और मातृभूमि आज़ाद हो गई।
सुभद्रा जी का जाना ऐसा लगता है मानो अपने मातृत्व के दुग्ध, स्वर और आँसुओं से उन्होंने अपने नन्हे पुत्र को कठोर उत्तरदायित्व सौंपा हो। प्रभु करे, सुभद्रा जी को अपनी प्रेरणा से हमारे बीच अमर करके रखने का बल इस पीढ़ी में हो।
सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय इन हिंदी | Biography of Subhadrakumari in Hindi
सुबद्रा जी प्रमुख रूप से कवित्री है. साथ ही उन्होंने कहानियां आदि भी लिखी है, जिनमें उनका गद्य लिखिका का रूप भी देखने को मिलता है, उनकी रचनाएँ अधिक नहीं है परन्तु जितनी भी है उनमें उनकी प्रतिभा के दर्शन होते है अपनी कम रचनाओं के द्वारा ही वे हिंदी साहित्य की अमर विभूति बन गईं है. उनकी रचनाएँ इस प्रकार है, कविता-संग्रह 'मुकुल', कहानी संग्रह 'बिखरे मोती', 'सीधे-सादे चित्र और 'चित्रारा शामिल है. 'झाँसी की रानी' उनकी इतनी बहुचर्चित रचना रही कि उसने समय और देश की सीमाओं को लांघ दिया.
जाने सुभद्रा कुमारी चौहान के विषय में। Know about Shubhdrakumari
कवित्री और स्वतंत्रता सेनानी सुभद्रा जी छायावादी युग की प्रमुख कवित्रीयों में से है. वे इसी लोक की बात कहती है, उनकी रचनाओं में अज्ञात प्रियतम के लिए कहीं भी तड़पन, टीस, आँसू नहीं है वरन देश की पुकार पर मर मिटने वाले पुरुष व महिलाओ की परम पावन स्मृति में आँसू बहाने मे उन्हें परम सुख प्राप्त हुआ है, इसलिए उनकी देश भक्ति से परिपूर्ण रचनाएँ अत्यधिक आकर्षित करने वाली रही है.
उनकी इस प्रकार की रचनाओं मे "झाँसी की रानी " सर्वश्रेष्ट रचना है, वीरोचित नारी जीवन चित्र इस कविता में चित्रित हुआ है इसका एक एक शब्द नवीन स्फूर्ति और उत्साह देने वाला है. सुबद्रा जी में भारतीय नारी की सहज कोमलता और भावुकता तो है वही साथ ही सामंत युग की झत्रारानीयों का रक्त और ओज भी है, उनकी रचनाओं मे इन दोनों भावनाओं का स्पष्ट प्रभाव मिलता है. "वीरों का कैसा हों बसंत और कलियों वाले बाग मे बसंत आदि उनकी ऐसी ही ओज पूर्ण रचनाएँ है.
झाँसी की रानी उनकी बेहतरीन रचनाओं में शामिल है
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
सुबद्रा जी आधुनिक हिंदी कवियत्रीयों मे अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है, वह मूलतः राष्ट्रीय भावना का अंकन करने वाली कवियत्री थी उन्होंने राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम मे खुलकर भाग लिया था, कई बार जेल गईं। उस युग में उनकी प्रसिद्ध रचना "झाँसी की रानी " जनता के गले का कण्ठहार बनी हुईं थी, उसकी उग्र राष्ट्रीय भावना के कारण अंग्रेज़ सरकार ने इस पुस्तक को जब्त कर लिया था। इस पुस्तक की
"बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।"
इन पंक्तियों ने उस युग में जनता में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करने और उसका प्रचार करने में इतिहासिक कार्य किया था।
सुबद्रा जी की रचनाएँ
- Rashtrabhakt Kavyitri Subhadra Kumari Chauhan इस पुस्तक में सुभद्रा कुमारी जी का परिचय एक राष्ट्रभक्त कवियत्री के रूप में कराया गया है उनके जीवन के विभिन्न पहलू के आधार पर उन्हें समझने के लिए बेहतरीन पुस्तक है।
- Sampoorna Kahaniyan - इस पुस्तक में उनकी कहानियों का अनूठा संगम मिलेगा।
- Subhadra Kumari Chauhan: Chuni Huyi Kahaniya - उनकी चिरकालीन सर्वश्रेष्ठ कहानी इस पुस्तक से आप प्राप्त कर साकते हैं।
पड़ते रहिये
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