दिल्ली क्यों जल रही है?? Riots In Delhi
29 Feb 2020, देश का दिल, दिल्ली में हुए दंगे में लगभग 40 लोगों की मौत हो चुकी है। नफऱत की इस आंधी ने पूरी दिल्ली को दहशत के गलियारों में धकेल दिया, और गली-गली में लहू से लिपटे लाठियों से ना जाने कितने बेकसूरों को पीट-पीट कर मार दिया गया और ना जाने कितने घरों को जला कर राख कर दिया गया।
दरअसल इस दंगे की शुरुआत उसी दिन हो चुकी थी जब 'सीएए' कानून के विरोध का स्वर पूरे देश में गुंजा। उत्तरप्रदेश, बंगाल समेत कई राज्यों से हिंसा की खबरें आने लगी। प्रदर्शनकारियों की निराशा सीएए से थी, और सीएए के समर्थकों की निराशा प्रदर्शनकारियों के प्रदर्शन से थी। शायद यही वजह रही होंगी की दिल्ली चुनाव में भी नफ़रत भरी भाषणों से नेताओं ने दिल्ली की हवा में ज़हर घोलना शुरू कर दिया। सड़कों पर बैठे शाहीनबाग के प्रदर्शकारी संविधान बचाने तो निकल गए, मगर रास्तों को जाम कर प्रदर्शन ही असंवैधानिक कर दिया। शायद यही वजह रही होंगी की देश के गृहमंत्री अमित शाह, जिन्हें कायदे से तो प्रदर्शनकारियों से बात करने में उतनी ही ऊर्जा दिखानी चाहिए थी, जितनी ऊर्जा संसद में सीएए कानून समझाने और कई कुतर्क रखने में दिखायी थी, लेकिन अमित शाह तो जोर से बटन दबाओ और शाहीनबाग में करंट लगाओ जैसी बातों से जनता का मनोरंजन कर बैठे।
नफरत की भीड़ का ध्यान इस ओर लगा ही था कि 'अनुराग ठाकुर' गद्दारों को गोली मारो वाले नारे से और 'प्रवेश वर्मा' रेप वाली बयानों से भीड़ को तैयार कर दिया।
इतनी कसर कम थी कि वारिस पठान ने 15 करोड़ वाली बात करके नफरत भरी भाषण से योगी आदित्यनाथ का रिकॉर्ड तोड़ दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि कोई गोली ही खाने आएगा तो हम क्या कर सकते हैं। चंद्रशेखर आज़ाद (रावण) ने भारत बंद का आयोजन किया और जाफराबाद, मौजपुर इत्यादि स्थानों में चल रहे प्रदर्शन से प्रदर्शनकारी सड़कों पर आकर बैठ गए और मेट्रो स्टेशनों को जाम कर दिया। शायद यही वजह रही होगी कि कपिल मिश्रा ने पुलिस डीजीपी के सामने ट्रम्प के जाने तक का इंतज़ार है बोल कर भीड़ को वही काम करने पर मजबूर कर दिया जो भीड़ हमेशा किया करती है। इन नेताओं ने आग लगाया और "मासूम जनता" जिसे तो हमेशा बड़ी आसानी से भड़काया जा सकता है, ने भड़क कर उस आग को पूरी दिल्ली में फैला दिया।
2 दिन तक हिंसा होती रही, दंगे होते रहे लेकिन पुलिस जेएनयू, गार्गीकॉलेज, जामिया की ही तरह चुप-चाप बैठी रही। कुछ पुलिस वाले तो बदले की भावना से अपनी ही नफरत निकाल बैठे, और भूल गए की विचारधारा चाहे कुछ भी हो जब तक शरीर मे वर्दी है तब तक कानून की भावना से ही चलना होगा। दंगे हुए, हमेशा की तरह आम आदमी ही मारा गया, जिस घर को बनाने में जिन नेताओं का कोई योगदान नही होता, उस घर को जलाने में उनका कितना योगदान होता है, शायद यही समझ जाते तो एक दूसरे के घरों का नही जला डालते। ट्रम्प गए और सबकुछ जादू जैसा ठीक हो गया, शायद यही जादू सरकार ने शुरू से ही दिखाई होती तो ना जाने कितनी जानें बचतीं और इतनी तबाही ना हुई होती। इस दंगे का जिम्मेदार कौन पूछने वाली मीडिया ने पूरा साल भर-भर कर हिन्दू मुसलमान किया और राम हमारे मंदिर हमारा, मस्जिद वाले कहाँ से पधारे, जैसे प्रोग्राम चलाए और दंगे के बाद लोगों को सही गलत का प्रमाणपत्र बाँटने लगे।
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