Khatu Shyam Baba ki Kahani in Hindi | खाटू श्याम की कहानी भाग – 1
आज हम आपको एक नए आर्टिकल की ओर ले कर जाएंगे इसमें हम हमारे पाठको को मोरवीनंदन बर्बरीक अर्थात खाटूश्याम जी Shri Khatu Shyam Ji की जीवन शैली का विस्तृत वर्णन बताएंगे।
Khatu Shyam Baba History In Hindi | खाटू श्याम जी का बाल्यकाल
खाटू श्याम जी के बचपन का नाम बर्बरीक था। उनके परिजन उन्हें इसी नाम से जानते थे। श्याम नाम तो इन्हें भगवान श्री कृष्ण ने दिया है। खाटू श्याम जी के बाल अत्यंत घुंघरालेले होने के कारण भी उन्हें यह नाम की प्राप्ति हुई है। लोग इन्हें मोरबी नंदन के नाम से भी जानते है।आल्सो रीड :-
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Who Is Khatu Shyam Baba? खाटू श्याम जी का संपूर्ण परिचय
हिंदू धर्म में सब के लोकप्रिय बाबा खाटू श्याम जी की कहानी मध्यकालीन महाभारत से शुरू होती है सर्वप्रथम भगवान खाटूश्यामजी बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे और रहस्यमई बात यह है कि खाटू श्याम जी महाबलशली गदाधारी भीम के पौत्र तथा घटोत्कच के पुत्र थे।मध्यकाल समकालीन समय में बर्बरीक बाल्यकाल में एक बहुत ही वीर योद्धा रहे है बर्बरीक ने अपनी मां मोरवी अर्थात कामकटंककटा से युद्ध कला को सीखा था। खाटूश्यामजी आज पूरे विश्व में सब जान रहे है अभी तो कुछ समय पहले तक इन्हें केवल राजस्थान राज्य में ही जाना जाता था लेकिन समय अंतराल बाद बाबा खाटू श्याम जी का प्रचार इतना अधिक बढ़ गया कि इससे हमारे भारत में ही नहीं बल्कि सारे विश्व में जाना जाता है और तो और अनेक परिवार बाबा के चमत्कारों को अपनी आंखों से देख भी चुके है।
Barbarik In Mahabharat | बर्बरीक से खाटू श्याम | Khatu Naresh ki Kahani
आइए अब यह जानते हैं कि आखिर बर्बरीक से खाटूश्यामजी तक का सफर मध्यकालीन समय में कैसा था। कौरव वंश के राजा दुर्योधन ने पांडवों को परेशान करने तथा पांडवों को मृत्यु की ओर भेजने के लिए एक लक्षागृह का निर्माण किया था परंतु पांडव लाक्षागृह से बचकर निकल गए और वनवास की ओर प्रस्थान कर गए।
पांडवों में से एक थे गदाधारी भीम जो कि वृक्ष के नीचे सो रहे थे उस जगह के समीप ही हिडिम्ब नामक राक्षस अपनी बहन हिडिम्बा के साथ रहता था। पांडवों की गंध राक्षस तक पहुंच गई तभी राक्षस हिडिम्ब ने आपने प्रिय बहन हिडिम्बा को आदेश दिया की जाओ और वन में विश्राम कर रहे मनुष्य को मारकर पास लेकर आओ। जैसे ही वह हिडिम्बा मनुष्य के पास आए तो सभी पांडव द्रोपति के साथ विश्राम कर रहे थे, उनमें से केवल भीम ही जागते हुए सब की रखवाली कर रहे थे।
Bheem Aur Hidimba In Mahabharat | खाटू श्याम की कहानी
हिडिम्बा, भीम की काया को देखकर मोहित हो गई और मन में यह सोचने लगी की यह मेरे लिए पति के रूप में उपयुक्त है। उसने तुरंत अपना वेश बदलकर सुंदर स्त्री का रूप धारण कर लिया उधर राक्षस भाई हिडिम्बासुर काफी समय तक प्रतीक्षा में रहते हुए सोचने लगा कि बहन अभी तक मनुष्य को मारकर क्यों नहीं लौटी।हिडिम्बासुर से रहा नहीं गया और वह स्वयं ही बहन को ढूंढने के लिए निकल गया जैसे ही वह पांडवों तक पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी बहन सुंदर स्त्री का रूप धारण करके भीम के साथ वार्तालाप कर रही है और यह सब देखकर वह अत्यंत क्रोधित हो गया।
Bheem Putra Ghatothkach | खाटू श्याम जी की जीवन कथा
इस घटना के पश्चात हिडिम्बा के बहुत अत्यधिक आग्रह करने के बावजूद माता कुंती और युधिष्ठिर के निर्णय अनुसार भीम और हिडिंबा का गंधर्व विवाह हुआ। उचित समय अवधि अनुसार हिडिम्बी गर्भवती हुई और एक महा बलशाली, बलवान पुत्र को जन्म दिया। किंतु पुत्र जन्म से ही बाल रहित था इसीलिए उन्होंने बालक का नाम घटोत्कच रखा।
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कुछ समय बीतने के पश्चात हिडिंबा ने कहा की अब उसका भीम के साथ रहने का समय खत्म हो चुका है। आवश्यकता होने पर वह फिर से आ जाएगी, लेकिन वह अपने अभीष्ट स्थान पर वापस जाना चाहती है। साथ ही घटोत्कच ने भी सभी को प्रणाम किया और आज्ञा लेकर उत्तर दिशा की ओर निकल गया।
Mahabharat Ghatothkach | Khatu Shyam ki Kahani in Hindi
कालांतर में घटोत्कच अपनी माता हिडिंबा से आज्ञा लेकर अपने महाबली पिता भीम, श्री कृष्ण, युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव आदि के दर्शन के लिए इंद्रप्रस्थ आया। जैसे ही भगवान श्री कृष्ण ने इस पराक्रमी वीर घटोत्कच को देखा, तो वे प्रसन्न चित्त हो उठे और उन्होंने पांडवों से कहा- कि इस युवा वीर योद्धा के विवाह का शीघ्र- अतिशीघ्र प्रबंध किया जाए।श्री कृष्ण की आज्ञा को स्वीकार कर पांडवों ने प्रश्न किया कि भगवान बेटे घटोत्कच का विवाह कहां और कैसे करना है, यह आप ही स्वयं सुनिश्चित करें।
श्री कृष्ण ने पांडवों के मन में उठे प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि घटोत्कच के लिए उसके बराबरी की कन्या मूरदैत्य की अति सुंदर बाला कामकटंककटा जो मूर दैत्य की औरसी पुत्री है। इस वीर योद्धा के लिए वही स्त्री उपयुक्त है और घटोत्कच ही अपने विवेक को धारण कर उस कन्या को शास्त्र विद्या में परास्त कर सकता है। मैं स्वयं घटोत्कच को शिक्षा से दीक्षित कर उस नारी को वरण करने हेतु भेजूंगा।
Mahabharat Mein Ghatothkach Aur Morvi | Khatu Shyam ki Kahani
जैसे ही घटोत्कच पूरी तरह श्री कृष्ण के हाथों दीक्षित हुए वह मोरवी को वरण करने के उद्देश्य से निकल पड़े उन्हें अपने मार्ग में अनेकों नदियां, नाले, जंगल, पहाड़ एवं अत्यंत भयंकर राक्षस, नर भक्षक, हिंसक तथा विभिन्न तरह के भयानक जानवरों को परास्त करना पड़ा और घटोत्कच इन सभी को पार करते हुए कमकटंककटा के महल के समीप पहुंचे।
Morvi Ka Mahal Aur Prahari Yuvtiyaan | Khatu Shyam Baba ki Kahani
महल के चारों ओर उपस्थित प्रहरी युवतियों ने घटोत्कच से विवेक पूर्वक प्रश्न किया कि, हे भद्रपुरुष तुम यहां क्यों आए हो? क्या तुम नहीं जानते कि यहां तुम्हारी मृत्यु का वरण हो सकता है? क्या तुम्हें यह महल के द्वार पर लटक रही मुंड की मालायें नहीं दिख रही है? क्या तुम भी इन वंदनवार में अपना शीश जुड़वाना चाहते हो? तुम से विनम्र निवेदन है कि तुम यहां से चले जाओ अपने प्राणों की रक्षा करो ऐसा कहकर प्रहरी युवतियों नें उनसे आग्रह किया।प्रहरी युवतीयों कि संपूर्ण वार्तालाप सुनने के बाद घटोत्कच ने विनम्रता पूर्वक उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा हे देवियों मैं इतना कायर पुरुष नहीं हूं, कि तुम्हारे कहने मात्र से यहां से वापस लौट जाऊं तुम से निवेदन है कि जाओ और अपनी महारानी से कहो वीर योद्धा तुमसे मिलने आया है और यह भी कहना कि वह तुमसे विवाह करना चाहते है।
शेष अगले भाग में........
कहानी अभी समाप्त नहीं हुई है। शेष लेख आपको Khatu Shyam ki Kahani in Hindi | खाटू श्याम की कहानी भाग - 2 में पढ़ने मिलेगा। उम्मीद है कि आपको मेरा यह लेख पसंद आएगा, और दूसरा भाग जल्द ही आपके लिए प्रस्तुत किया जाएगा। कोई गलती हुई हो तो आप सभी श्याम भक्तो से क्षमा चाहती हूँ। कमेंट और शेयर करना ना भूले और अगला भाग पड़ने के लिए सब्सक्राइब अवश्य करें। धन्यवाद
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