बर्बरीक से खाटू श्याम की कथा
"Sheesh Ke Daani Shree Khatu Naresh Ki Jay"
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Khatu Shyam Ji ki Kahani in Hindi - Mahabharat Barbarik Ki Katha
महाबली भीम एवं हिडिंबा के पुत्र शूरवीर घटोत्कच ने मूर दैत्य की पुत्री कामकटंकटा (मोरवी) से गंधर्व विवाह किया। तत्पश्चात कुछ समय व्यतीत होने पर उन्होंने एक पराक्रमी शिशु को जन्म दिया। पुत्र के सिंह की भांति सुंदर बाल को देखकर उनका नाम बर्बरीक रख दिया गया। यह वही मोरवी नंदन बर्बरीक हैं। जिन्हें आज हम सभी खाटू के श्री श्याम, तीन बाण धारी, शीश के दानी, खाटू नरेश और न जाने कितने नामों से जानते और मानते है।जैसे ही बर्बरीक का जन्म हुआ घटोत्कच उन्हें फौरन ही भगवान श्री कृष्ण के पास द्वारका नगरी ले गए और बर्बरीक का मुख देखते ही श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि, हे मोरबी पुत्र कहो तुम्हें क्या कहना है? जिस प्रकार श्रीकृष्ण को घटोत्कच से अति लगाव था। उसी प्रकार बर्बरीक भी उनके लिए बहुत प्रिय थे। तभी बर्बरीक ने कृष्ण से प्रश्न करते हुए कहा, हे - प्रभु हमारे इस जीवन का सबसे उत्तम उपयोग क्या है?
Mahabharat Me Barbarik Aur Shree Krishna | Khatu Shyam ki Kahani
बरबरी के इस प्रश्न को सुनते ही श्रीकृष्ण ने कहा पुत्र बर्बरीक हमारे मानव जीवन का सर्वोत्तम उपयोग परोपकार तथा बिना किसी बल अर्थात निर्बल का साथी बनकर सदैव अपने धर्म का साथ देने में है। परंतु इसके लिए तुम्हें बल एवं शक्ति की शिक्षा अर्जित करनी पड़ेगी। बर्बरीक प्रश्न का उत्तर सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए एवं मन में शांत भाव जागृत हुआ।तत्पश्चात श्री कृष्ण ने कहा कि तुम महिसागर क्षेत्र में नौ देवियों की आराधना कर इस शक्ति का अर्जन करो। तभी बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम किया एवं जैसे ही श्रीकृष्ण ने उन्हें इतने सरल ह्रदय सहित देखा, तो देखकर ही उन्होंने वीर बर्बरीक को "सहृदय" नाम से अलंकृत कर दिया।....
Barbarik In Mahabharat - शास्त्र विद्या, अस्त्र विद्या का ज्ञान | Khatu Shyam Baba ki Kahani
तब वीर बर्बरीक ने समस्त शास्त्र विद्या, अस्त्र विद्या का ज्ञान हासिल कर महिसागर क्षेत्र में 3 साल तक नवदुर्गा की सच्ची निष्ठा, तप तथा सच्ची आराधना की। तत्पश्चात मां भगवती जगदंबा ने खुश होकर वीर पुत्र बर्बरीक के सामने प्रकट होकर तीन बाण एवं कई ऐसी शक्तियां प्रदान की।जिससे वे तीनों लोकों में विजय प्राप्त कर सकते थे। इसके पश्चात उन्होंने बर्बरीक को "चण्डील" नाम से भी अलंकृत किया। यह सब व्यतीत होने के पश्चात मां जगदंबा ने वीर बर्बरीक को उसी क्षेत्र में अपने शिष्य विजय नामक एक ब्राह्मण, जो सिद्धि को सिद्ध करने के लिए प्रयासरत थे। उस सिद्धि को संपूर्ण करवाने का निर्देश देकर अंतर्ध्यान हो गई।
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Barbaric ka Shree Khatu Shyam Ji Banne Tak Ka Safar | Khatu Naresh ki Kahani
ब्राह्मण के आदेशानुसार बर्बरीक ने उनकी साधना में विघ्न डालने वाले सभी राक्षसों को यमलोक भेज दिया एवं असुरों को मारने पर नागों के राजा मानसूकी वहां पर प्रस्तुत हुए और बर्बरीक को दान मांगने के लिए कहा।ब्राह्मण विजय की निर्भय तपस्या सिद्ध होने पर यही वर मांगा कि बर्बरीक हर युद्ध में विजई हो।
वीर मोरवी नंदन बर्बरीक रास्ते में प्रस्थान करते समय पृथ्वी तथा पाताल के बीच नौ कन्याओं का विवाह प्रस्ताव केवल यह कहकर ठुकरा दिया कि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी व्रत धारण किया है और वह विवाह नहीं करना चाहते।
Mahabharat Yudh Mein Barbarik | खाटू श्याम की कहानी
धीरे-धीरे समय बीतता गया और कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध की तैयारी शुरू होने लगी।बर्बरीक ने महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने पर अपनी माता के समक्ष मन की भावना प्रकट करते हुए कहा कि हे मां मैं युद्ध में शामिल होना चाहता हूं।
परंतु माता मोरवी ने युद्ध में भाग लेने की आज्ञा केवल एक वचन पर दी, कि पुत्र बर्बरीक तुम युद्ध में केवल हारने वाले पक्ष का साथ निभाओगे।
बर्बरीक के पूर्व जन्म में ब्रह्मा जी द्वारा श्राप | खाटू श्याम जी की जीवन कथा
परंतु जब बर्बरीक युद्ध में भाग लेने निकले तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें रोका क्योंकि वे जानते थे महाभारत युद्ध में यदि वीर योद्धा बर्बरीक युद्ध भाग लेंगे, तो कौरव की समाप्ति केवल 16 दिनों में महाभारत युद्ध में नहीं हो सकती और पांडवों की हार निश्चित रूप से तय है। बस यही सोचकर श्री कृष्ण वीर योद्धा महाबलशाली बर्बरीक के सामने ब्राह्मण के वेश धारण कर पहुंचे और उन्हें रास्ते में ही रोककर बर्बरीक से कहा- मात्र तीन बाणो को लेकर युद्ध में शामिल होने आए हो और यह कहकर बर्बरीक की हंसी उड़ाने लगे।
Mahabharat Barbarik Ki Katha | खाटू श्याम जी की जीवन कथा
और! भगवान श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक का शिरोच्छेदन कर महाभारत के युद्ध से अलग कर दिया। जैसे श्री कृष्ण ने बर्बरीक का शिरोच्छेदन किया। वैसे ही युद्ध भूमि में शोक की लहर उठ गई और तुरंत ही युद्ध भूमि में 14 देवियां प्रकट हो गई तथा उन 14 देवियों ने वीर योद्धा बर्बरीक के पिछले जन्म में यशराज (सूर्यवर्चा) को ब्रह्मा जी द्वारा दिए गए अल्प श्राप के रहस्य का उद्घाटन करते हुए, सभी उपस्थित लोगों के सामने रखा।
श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक का शिरोच्छेदन क्यों किया? Khatu Shyam ki Kahani in Hindi
देवियों ने कहा कि द्वापर युग की शुरुआत होने से पहले मूर दैत्य के अत्याचारों से व्यतीत हो पृथ्वी ने अपने गो स्वरूप में देव सभा में जाकर इस तरह बोला कि हे! देवगण मैं सभी तरह का दुख दर्द संताप सहन करने में सक्षम हूं। पहाड़, नदी, नाले, समस्त मनुष्य जाति का भार मैं सहर्ष सह रही हूं और सहन करती हुई अपनी दिन प्रतिदिन दैनिक क्रियाओं का संचालन बहुत अच्छी तरह करती रहती हूं। पर मैं मूर दैत्य के अत्याचार और उसके द्वारा किए जाने वाले बुरे आचार विचारों से दुखी हूं। आप लोग से विनम्र निवेदन है, कि मेरी रक्षा इस दुराचारी से करें।
Mahabharat Mein Barbaric | क्या था वह श्राप? | Khatu Shyam ki Kahani
तभी धरती की करुण पुकार सुनकर सारे सभा में सन्नाटा सा छा गया। कुछ समय शांत रहने के पश्चात ब्रह्मा जी ने कहा इन सबसे से मुक्ति पाने का केवल एकमात्र उपाय है, कि हम सबको भगवान विष्णु की शरणागत होना चाहिए और पृथ्वी के संकट निवारण हेतु उन से विनम्र प्रार्थना करनी चाहिए। तुरंत ही देव सभा में विराजमान सूर्य वर्चा ने अपनी ओजस्वी वाणी में कहा मूरदैत्य इतना प्रतापी भी नहीं है, जिसको मृत्यु तक पहुंचाना केवल विष्णु जी ही कर सकें। हर बात के लिए हम उन्हें ही क्यों पुकारे? उन्हें ही क्यों परेशान करें? आप लोग मुझे इसकी अनुमति दें। तो मैं खुद अकेला ही मूरदैत्य का वध कर सकता हूं।
Barbarik Ki Katha Mein Aagey Kya Hua? Khatu Shyam Baba ki Kahani
इतना सुनते ही ब्रह्मा जी ने बोला नादान मैं तुम्हारा बल पराक्रम सब जानता हूं। तुमने झूठे ही गर्व में इस सभा में उपस्थित लोगों को चुनौती दि है। इसका दंड तो तुम्हें अवश्य मिलेगा। तुमने अपने आपको भगवान विष्णु से श्रेष्ठ समझकर बहुत बड़ी गलती की है। इस अज्ञानता को तुम्हें भुगतना होगा। अब तुम राक्षस योनि में जन्म लोगे। द्वापर युग में अंतिम चरण में बहुत घमासान धर्म युद्ध होगा। तभी तुम्हारा सिरोच्छेदन भगवान विष्णु करेंगे और तुम हमेशा-हमेशा के लिए जन्मो जन्म तक राक्षस ही बने रहोगे। इस घटना के पश्चात ब्रह्मा जी के अभिशाप से यक्ष राज सूर्यवर्चा का सारा गर्व जो कि मिथ्या था, वह चूर-चूर हो गया और वे तत्काल ही ब्रह्मा जी के चरणों में पहुंचे और उन्होंने हाथ जोड़कर विनम्रता पूर्वक उनसे अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी।Barbarik Ki Katha शेष अगले भाग में............
दोस्तों Shree Khatu Shyam Ji | खाटू श्याम की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है अभी तो मुख्य भाग शेष है। कैसे बने बर्बरीक से खाटू श्याम ?आशा करती हूं कि पाठकों को "भगवान खाटू श्याम जी" के संपूर्ण जीवनकाल का वर्णन मेरे द्वारा लिखे गए लेख के माध्यम से समझने में आसानी होगी। पड़ते रहिये और आगे की कथा पड़ने के लिए सब्सक्राइब करना ना भूलें। धन्यवाद
"बोलो खाटू नरेश शीश के दानी श्री मोरवी नंदन खाटू श्याम की .... जय !!!"
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