Ramdhari Singh Dinkar Biography
रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी
साहित्य हिंदी : रामधारी सिंह दिनकर
हिंदी का दिनकर। Hindi's Dinkar
रामधारी सिंह दिनकर हिंदी का एक चमकता सूरज जिसने हिंदी को नये रूप में समाज को प्रस्तुत किया। हिंदी का एक एक शब्द और स्पस्ट लेखन दिनकर जी को हिंदी में महानतम स्थान पर रखता है। दिनकर वह जिसने हिंदी को उस शिखर पर रख दिया है।
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Ramdhari Singh Dinkar Biography In Hindi
दिनकर के बारे में | As A Poet Dinkarउन सभी की आवाज़ को ऊपर रखा जो गूंगे थे। वह दिया जलाया जिसकी वजह से समाज उन्नत हो। दिनकर ने ग़ांधी के विचारों को लिखा , महाभारत के युद्ध का अनुपम वर्णन अर्जुन कर्ण का विवेक लिखा है। दिनकर कुरुक्षेत्र की शांत हो जा रही आवाज़ को फिर से याद दिलाया। और फिर से कुरुक्षेत्र की कहानियां लोगों की जुबान पर चढ़ गई। साथ में चढ़ गया एक किनारे से निकलता हुआ लाल रौशनी से सना एक दिनकर जिसको सम्मान मिला, जिसने साहित्य को सम्मान दिया। लोगों की विचार शक्ति को बढ़ा किया, आपसी मतभेदों को समाप्त किया।
रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी | Biography In Hindi
यह दिनकर कवि समाज उन्नति के अथक प्रयास और दिनकर के शब्दों का जादू ऐसा चढ़ गया कि लोग उसी रंग में डूब गए। किन्तु जब शुद्ध हिंदी, दिनकर की लेखनी से उतरी तो बहुत से पढ़े लिखे लोगों को भी दिनकर समझ नहीं आते थे। कहा जाता है कि दिनकर को चार चार बार पढ़ना पढ़ता था। जब देश को नई नई आजाद सुबह मिली थी तब भी देश साम्प्रदायिकता और भेदभाव और समाज की रूढ़ि बादी परम्पराओं से लोग ग्रसित थे। तब दिनकर जन चेतना जगाने के लिए अपने काव्यों को माध्यम बनाकर गद्य, कविता,पद्य शैली में दिनकर ने अपनी बात जन मन तक पहुँचाने का काम किया।समाज में दिनकर | As A Socialist Dinkar
आज के नय कवि भी दिनकर को पढ़कर शब्द कला का ज्ञान लेते है। बहुत से गायक कवि जन चेतना और अन्य उदेश्यों से दिनकर की रचनाओं को अपनी आवाज़ दे कर गुनगुनाते है। उनकी ओजस्वी कविताओं की छाप ऐसी है कि एक सुई को भी तलवार के सामान जोश भर दे और किसी पत्थर को गुलाब, और मोम सा बना देने की प्रेम पूर्ण भाषा दिनकर की कविताओं में झलकती है। आज वीरता के तीव्र स्वर में जब दिनकर की रचना होंठो पर चढ़ जाती है, मन करता है कि अभी हथियार थाम लूँ और किसी युद्ध का हिस्सा बन जाऊं।
रामधारी सिंह दिनकर का स्वभाव
वह और कवि की तरह सहस सरल स्वभाव से थे, किंतु गीतों में ओज ही लिखा करते थे। उनको प्रेम, अलग ही लिखना आता था वो मानव की पीड़ा देखकर कराह जाने वाले कवि थे। उनकी रचनाएं किसी एक संप्रदाय के लिए नहीं होती थी। हालाँकि उनकी भाषा हिंदी अवश्य थी पर हर विषय के लिए लिखा करते थे। किसी क्रांति की महक उनकी कविताओं से उनकी काव्यकृतियों से निकल कर आती है। वो अहिंसावादि भी थे और आवश्यक है तो हिंसा को भी उचित मानने वाले थे ।जन साधारण की आवाज़ रखने वाले कवियों की श्रेणी में दिनकर जी का स्थान सर्वोपरि है। उन्हें किसी भी प्रकार की परंपराओं से बैर नहीं है।
ग़ांधी के साथ दिनकर | Dinkar With Mahatma Gandhi
वे लिखते है-"अच्छे लगते मार्क्स, किंतु है अधिक प्रेम गांधी से.
प्रिय है शीतल पवन, प्रेरणा लेता हूं आंधी से."
वह भी ग़ांधी जी की भाँति ही दलितों पिछड़ों के शोषण से चिंतित रहा करते थे कई बार उन्होंने पुरजोर ताकत से इनकी आबाज उठाई लोगों में समाजबाद की भावना का अपनी लेखनी के माध्यम से प्रचार किया।
जैसे
"हटो व्योम के मेघ, पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते है
दूध-दूध ओ वत्स तुम्हारा दूध खोजने हम जाते है"
हर उस विषय पर उनकी नजर जमी रहती थी। ग़ांधी जी की हत्या, भारत चीन युद्ध हो, या दवे पिछड़े लोगों का शोषण हो, हर वक्त एक दिनकर निकलता था। उनकी अँधेरे से मन में रौशनी करने का काम दिनकर ने किया है। जब सरकारें बहरी हो गईं राजनीती में एक बदलाब आया और निरंकुश नेता जब जनता की सुनने को तैयार नहीं हुआ करते थे और तब जनता की आवाज़ बनकर दिनकर लिखते है
“दो राह समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,सिंहासन खाली करो कि जनता आती है"
दिनकर की जीवन यात्रा | Ramdhari Singh Dinkar Biography
बिहार के मुंगेर जिले में 23 सितम्बर 1908 को रामधारी सिंह दिनकरकी पहली किलकारी किसान के घर से उनकी जीवन यात्रा शुरू हुई।
हवा, पर्वत खेतों, बाग , फूलों के साथ रहकर शिक्षा ली और लिखना प्रारम्भ कर दिया और आगे चलते चले गए बहुत विचारक उस समय थे किन्तु उनके विचार उनकी लेखनी में थे।
वह किसी एक विचार का अनुशरण नहीं करते थे। उनके लिए देश सर्वोपरि था देश हित और साहित्य में उनके आदित्य योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रकवि का सम्मान प्राप्त है। हिंदी साहित्य के लिए कुछ स्वर्णिम अध्यायों की कृति हुयी जिसमें दिनकर एक युग की तरह है। दिनकर जी हिंदी साहित्य ही नहीं अपितु पूरा समाज ही कृतज्ञ है दिनकर ने राजनेताओं से लेकर पंडितों, आम जनता तक को साहित्य को माध्यम बनाकर तीखा वार किया है। उनकी रचना ऐसी है, जो जीवन जीना भी सिखाती है और लड़ना भी और विद्रोह करना भी सिखाती है ।
रामधारी सिंह दिनकर की श्रेष्ठतम रचनाएं
हिंदी में उनकी श्रेष्ठतम रचनाएं उपलब्ध है - जिनमें रश्मिरथी, कुरुक्षेत्र, दिल्ली, बापू, हुंकार प्रमुख है।
24 अप्रैल 1974 को राजनीती से लेकर समाज के हर पहलु को सही तराजू से तोलने वाला कवि और उस अंधकार को प्रकाशमय करने वाला दिनकर ढल गया।
लेकिन उनके गुज़र जाने के 44 साल बाद भी दिनकर जी के विचारों को कवि, राजनेता, नेता सभी लोग उद्धृत करते है।
ऐसा निडर और सत्ता से सीधे सवाल करने वाला लेखक और कवि रामधारी सिंह दिनकर जी हिंदी में अपना नाम अमर कर गए।
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