Munshi Premchand Biography In Hindi | मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

Munshi Premchand Biography In Hindi | मुंशी प्रेमचंद की जीवनी
Munshi Premchand Biography In Hindi 
मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

Munshi Premchand Biography हिंदी के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद जो कभी 18 रुपये तनख्वाह ले कर गाँव के एक स्कूल में पढ़ाया करते थे, वो आज समाज को मानवीय सच्चाइयों से रूबरू कराने वाले महान साहित्यकार और लेखक के रूप में जाने जाते हैं। मुंशी प्रेमचंद का बचपन कठनाइयों और दुखों की पोटली से भरा पड़ा था। उनका जीवन चुनोतियों से संघर्ष करता हुआ आज जिस तरह सुशोभित हो रहा है, उस जीवन के कुछ पहलुओं को हम अनुभव करने का प्रयास करेंगे।

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मुंशी प्रेमचंद की जीवनी | Munshi Premchand Biography

प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस शहर से क़रीब चार मील दूर लमही नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था, जो डाकघर में मुंशी का पद संभालते थे। उनकी माता का नाम आनंदी देवी था। प्रेमचंद हिंदी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक थे।




उनकी शिक्षा की शुरुआत उर्दू, फ़ारसी से हुआ और उन्हें पढ़ने का शौक बचपन से ही लग गया। 13 साल की उम्र में उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त किया। मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात वे गांव के एक विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हुए। नौकरी के साथ साथ उन्होंने पढ़ाई जारी रखी, उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फ़ारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया। बी.ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।

Munshi Premchand Biography In Hindi

Munshi Premchand Biography In Hindi | मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

मुंशी प्रेमचंद के बचपन का सफर कष्टमय रहा जब वह महज़ सात वर्ष के थे तब उनकी माता का निधन हो गया। फिर उनके पिता की नौकरी तबादला गोरखपुर में हो गया और पिता ने दूसरी शादी कर ली, उनकी सतौली माँ से उन्हें अपनी माँ की ममता जैसा छाँव नही मिला। चौदह साल की उम्र में पिताजी का भी देहांत हो गया। इस तरह उनका बचपन कठिन परिस्थितियों का सामना करता रहा, आठ वर्ष के उम्र में माँ के चले जाने के बाद बालक प्रेम चाहने के बाद भी नही मिला। पहनने के लिए कपड़े नही होते थे, खाने के लिए पर्याप्त भोजन नही मिलता था और सतौली माँ का व्यवहार उन्हें तोड़ देता था। पिता के देहांत के बाद उनके सर पर पूरे घर का खर्च आ गया। उनकी विमाता, उसके दो बच्चे, पत्नी और स्वंय। प्रेमचंद का विवाह 15-16 साल की उम्र में हो गया था जो फला नही और कुछ समय बाद उनकी पत्नी का भी देहांत हो गया। उनकी आर्थिक स्थितियों का अनुमान उस घटना से लगाया जा सकता है जब उन्हें पैसे के अभाव में अपना कोर्ट बेचना पड़ा और पुस्तकें बेचनी पड़ी।



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उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चटोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी कहानी और उपन्यास की विरासतों को उस शिखर पर पहुँचा दिया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी पंरपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिंदी साहित्य का ऐसा वरदान है जिसके बिना हिंदी का विकास अधूरा होगा। प्रेमचंद एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्त तथा विद्वान संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वाद्ध में जब हिंदी में तकनीकि सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने सहित्य को प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाया है, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। उनके पुत्र हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतराय हैं जिन्होंने इन्हें कलम का सिपाही नाम दिया।

प्रेमचंद की भाषा हिंदी उर्दू मिश्रित थी। अलंकारों और मुहावरों ने उन्हें सजीवता प्रदान की। इनकी भाषा के कारण इनकी रचना के सभी पात्र व चरित्र हमारे समक्ष सजीव हो उठते हैं। यही इनकी भाषा की सबसे बड़ी ताकत है। इनकी भाषा सहज, सरल एवं बोधगम्य है। साहित्य एक विराट उद्देश्य को लेकर चलने वाली विद्या है और उसमें मनुष्य के सामाजिक जीवन को अधिक सूक्ष्मता एवं विस्तार से जांचा परखा जाता है। उपन्यास सहित्य की सशक्त एवं प्रवाहमय धारा है। मनुष्य चरित्र के अनेकानेक चित्र प्रस्तुत करने के लिए सबसे अधिक विकल्प उपन्यासकार के पास ही होते है।

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प्रेमचंद के उपन्यास व्यष्टि और समष्टि की सटीक व्याख्या करते हैं। उसमें मनुष्यों की सैद्धान्तिक जटिलताओं और प्रपंचों से मुक्ति पाने का संदेश दिया गया है। उनके उपन्यास सहजता व सरलता का प्रसार करते हैं। प्रेमचंद के उपन्यासों को रचना उस दौर में हुई, जब भारत सरकार में अंग्रेजी राज और उसके अत्याचार चरम पर थे। उनके उपन्यास में तत्कालीनघटनाएं सजेवत के साथ चित्रित की गई है। प्रेमचंद ने अपने समय में साहित्य और समाज के बीच एक मजबूत सेतु की भूमिका निभायी, जिससे आम आदमी के मन में भी साहित्य के लिए भरोसा पैदा हुआ।

मुंशी प्रेमचंद की जीवनी

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प्रेमचंद ने 300 कहानियों और चौदह बड़े उपन्यास लिखे। उनके रचे साहित्य का अनुवाद सभी प्रमुख भाषाओं में हो चुका है, जिसमें विदेशी भाषाएं भी शामिल है। अपनी रचना गबन के जरिये से एक समाज की ऊंच-नीच, और निर्मला से एक स्त्री को लेकर समाज की रूढ़िवादिता और बूढ़ी काकी के जरिए समाज की निर्ममता को जिस विशेष अंदाज के साथ प्रस्तुत किया है उसका कोई तुलना नही है। इसी तरह पूस की रात, बड़े घर की बेटी, बड़े भाईसाहब, आत्माराम, शतरंज के खिलाड़ी जैसी कहानियों से प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को सुशोभित किया है। सन 1935 में मुंशी जी बहुत बीमार पड़ गए और 8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।

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